News Riders News : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से 17 नवंबर से 23 नवंबर तक चल रही, साईं दास स्कूल ग्राउंड, जालंधर में श्रीमद्भागवत साप्ताहिक कथा ज्ञानयज्ञ के सप्तम् दिवस की सभा में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने बहुत ही सुसज्जित ढंग से भगवान श्रीकृष्ण जी के अलौकिक एवं महान व्यक्तित्व के पहलुओं से अवगत करवाया। रूक्मिणी विवाह प्रसंग के माध्यम से सीख मिलती है कि प्रभु उस आत्मा का वरण करते हैं जिसमें उन्हें प्राप्त करने की सच्ची जिज्ञासा हो .
भौमासुर राक्षस की कैद में सोलह हज़ार राजकुमारियां बंदिनी थी। उन्होने मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण जी को अपनी रक्षा के लिए पुकार लगायी। इधर इन्द्रदेव ने द्वारिका में जाकर प्रभु को भौमासुर राक्षस के कुकृत्यों के विषय में बताया कि उसने अदिति माता के कुंडल, देवताओं का छत्र और सोलह हज़ार नारियों को चुरा लिया है। प्रभु ये सब सुन कर एक ही निर्णय लेते हैं कि मैं प्रत्येक वस्तु चुराने के लिए उस राक्षस को क्षमा कर सकता हूं परंतु नारी का अपमान मैं सहन नहीं कर सकता। यही कारण था कि प्रभु और भौमासुर में घमासान युद्ध हुआ। राक्षस मारा गया और सोलह हजार नारियों को उस आततायी की कैद से विमुक्त करवाया गया। समाज में उन की पुनः प्रतिष्ठा हेतु प्रभु ने नवयुवकों का आहवान किया। किसी को भी आगे बढ़ता न देख कर स्वयं उनको अपना नाम दिया। क्योंकि भगवान जानते थे समाज में एक नारी की कैसी स्थिति होनी चाहिए। समाज में नारी का क्या स्थान है वो इससे परिचित थे। कहते हैं कि किसी राष्ट्र की स्थिति जाननी हो तो वहां नारी का कैसा दर्जा है उससे अनुमान लगाया जा सकता है। जिस स्थान पर नारी का सम्मान होता है वहां देवता भी निवास करते हैं। नारी नेतृत्व करने वाली, महिला जो पूजा के योग्य है, स्त्री जो प्रेम सद्भावना का विस्तार करती है ऐसा माना गया है। अर्जुन, अभिमन्यु, प्रताप, शिवाजी का चरित्र पढ़िए उनमें असाधारण वीरता थी। वे वीर रत्न माता के उदर से ही महान संस्कार प्राप्त करके उत्पन्न हुए थे। माताओं की पवित्र, उच्च भावना का उनके जीवन पर प्रभाव पड़ा। ध्रुव – प्रहलाद में जो अद्भुत भक्ति बल था, वह सब उनकी जननी के संस्कारों का प्रभाव था। मदालसा देवी जब अपने पुत्रों को पालने में सुलाती तो उस समय उनको आध्यात्मिक भावनाओं से पूर्ण लोरियां सुनाती थी। झांसी की रानी, ताराबाई, रानी किरणवती, गार्गी, अपाला, घोषा इत्यादि महान नारियों को भारत का इतिहास कभी नहीं भुला सकता।
परंतु आज की सदी में जहां विज्ञान और कम्पयूटर का युग है वहां नारियों को माँ की कोख में ही मार दिया जाता है। कन्याभ्रूण हत्या जैसी भयंकर बीमारी आज हमारे समूचे समाज में फैल चुकी है। नवरात्रों के दिनों में माँ दुर्गा के नौ स्वरूप के रूप में जिन कंजकों को हम पूजते हैं उसी माँ के स्वरूप को अपने घर में आने से पहले ही मार देते हैं। हम विद्या के लिए देवी सरस्वती, शक्ति के लिए देवी दुर्गा, धन के लिए देवी लक्ष्मी का पूजन करते हैं। क्या ये
सब नारियां नहीं? आज हमें अपनी रूढ़िवादी सोच को बदलना होगा। नारी को आत्मसम्मान के साथ जीने का अवसर दें। नारी को भी अपनी आत्म रक्षा के लिए अपनी भीतर की सोई हुई शक्तियों से परिचित होना होगा। यह मात्र ब्रह्मज्ञान से ही संभव है।